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क्या हमारी सोच ऐसी भी हो सकती है ….?
मैं अक्सर शाम को घर पे बाते करता था .17 तारीख की शाम को मैं घर पर बाते करना भूल गया था लेकिन मेरा भाई साकेत मैक्स सिटी हॉस्पिटल में कार्यरत है और वो भी अक्सर मेरे से बातें करता है उस दिन मुझे 10 :25 बजे रात को मेरे से पूछा की तुमने घर पर फोन किया था,मैंने मना कर दिया की नहीं मैंने नहीं किया था तो उसने बताया की गाँव में एक घटना हो गई है. मैंने थोड़ा डिटेल में जानने की कोशिश की तो उसने बताया …….
मेरे गाँव में एक sc श्रेणी के परिवार की घटना है . पुरे घटना का माजरा है “एक बेटे ने अपने बाप को जान से मार दिया ”
हुआ कुछ यूँ ,
मैं सोचता हूँ कभी-कभी,की एक मनुष्य की सोंच कहाँ तक गिर सकती है बेटा हर रोज़ बाप को मारने की धमकी देता था. जब वह छोटा था तो मैं भी देखा था उसे और देखने से कही से भी नहीं लगता था की वो ऐसा कर सकता है लेकिन कर दिया.
इन्शान की सोंच को भगवन ने इतना जटिल क्यूँ बनाया .जितना ही बिनम्र है उतना ही ख़तरनाक.
क्या ऐसे भी दिन आने वालें है जब हम अपना ही ख़ून खुद से बहाएँगे और बदले में हमें कुछ नहीं मिलेगा सिवाय दुःख के .
हम इतने गिर जाएँगे की अपनी इज्ज़त को खुद ही लीलाम कर दें हाय रे कलयुग और हाय रे ज़माना .उस बाप को क्या पता की वाकई हमे मार देगा और ताज्जुब है बेटे की हिम्मत की कि उसने फावड़े से तिन बार अटैक किया. और नतीजा कि बाप ने मौके पर ही दमतोड़ दिया .लानत है ऐसी औलाद पर.
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