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ये इल्ज़ाम क्या देना….

नमस्कार !

नववर्ष के शुभ आगमन पर मेरी तरफ से आप सबको एक प्यारा सा भेंट …….
उम्मीद है आप लोग स्वीकार करोगे ………..
नववर्ष मंगलमय हो !!!!!!!!!!!
2011

मैं आप लोगों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ की आप लोगों ने  मेरी पिछली रचना पे बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दीये थे और ये जान कर मुझे काफी ख़ुशी हुई की आप लोगों को मेरी रचना काफी पसंद आई. मैं एक बार फिर दिल की गहराइयों से आप लोगों का धन्यबाद करता हूँ!

मैं आप लोगों की सेवा में हरदम रहूँगा . मैं आप लोगों से एक छोटी सी गुज़ारिश  करता हूँ की कृपया मेरी त्रुटी से मुझे अवगत कराएँ ताकि मै अपनी लेखनी को आगे तक ले जा सकूँ.

आप लोगों का सुझाव सराखों पे !

मैं इस बार भी अपनी अल्प ज्ञान से टूटी-फूटी लहज़े के साथ आप लोगों के ख़िदमत में पेश कर रहा हूँ कुछ पंक्तियाँ . अगर पसंद आये तो हौसला अफजाई करियेगा और न पसंद आये तो कृपया सुझाव दीजियेगा.

                                                                                                        
 आप लोगों का शुभचिंतक !  अमित देहाती

नशा करता नहीं फिर भी नशे में मस्त रहता हूँ ,
तो फिर बोतल के सर नशे का ये इल्ज़ाम क्या देना.
हज़ारों ख्वाहिशें होशों में बिखरी सी नजर आती,
पूरा अरमां किया दो घूंट, तो फिर इल्ज़ाम क्या देना.

बड़ी बेदर्द दुनियां है मगर हंसके ही जाना है ,
गर्दिशों के सफ़र में भी हमेशा मुस्कराना है .
हालात-ए-दिल कहूँ गैरों से, अपने अब कहाँ यारों .
यहाँ बनते है अपने सब मगर लगता फशाना है.

मुहब्बत गर नहीं होती दिल-ए- नादाँ नहीं होता,
तो फिर अमृत सा हाले का ये अंजाम न होता.
है शुक्रिया ओ रब जो बेवफ़ा यार मिला मुझको,
वर्ना तहजीब की महफ़िल में शराबी नाम न होता.

कभी जब होश आती है तो दर्द-ए-दिल छुपाता हूँ,
मेहक प्यालों से मिलती है सुकून, तो जाम क्या लेना.
बड़ी उम्मीद लेकर के शहर आया था “देहाती ”
बिना पिए न गुजरी रात तो फिर इल्ज़ाम क्या देना .

नशा करता नहीं फिर भी नशे में मस्त रहता हूँ , तो फिर बोतल के सर नशे का ये इल्ज़ाम क्या देना.                                                 
           
                           "अमित देहाती”