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आप सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार !
जैसा की आप सभी जानते , दौर है वैलेंटाइन का और सभी दो-दो ब्लॉग अपने भूले बिशरे यादों के साथ प्रस्तुत कर रहें है | मैं भी एक अपना प्रस्तुत कर चूका हूँ | अब सोच रहा हूँ की दुसरे से भी आप सब को रु-ब-रु करा ही दूँ |
इस अल्प ज्ञानी के शब्द कोष में शब्दों का रिसेसन है इस लिए कही त्रुटी मिले तो कृपया सही शब्द रख के मुझे सूचित करें | अर्थात सटीक शब्द सुझाएँ |
इस देहाती से कोई ख़ता हो जाये तो क्षमा करें !
आप सबका शुभचिंतक
अमित देहाती
मैं प्यार करता रहूँ , इतना बस दुआ देना |
कोई चराग बुझ जाये , वो न हवा देना ||
मैं प्यार करता रहूँ , इतना बस दुआ देना …
तुमसे मिलने से पहले , था मैं अजनबी की तरह |
अब जी रहा हूँ जिंदगी को , जिंदगी की तरह ||
दम निकल के भी न निकले वो दवा देना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतना बस दुआ देना ….
तेरे ख़याल का मुझको , खबर हमेशा रहे |
तू हर किसी के शक्ल में , मुझे तो ऐसा लगे ||
जला दिए हो शमा दिल में, तो न बुझा देना ,
मैं प्यार करता रहूँ ,इतना बस दुआ देना …
तेरे रहमत से आई है, बहार गुलशन में |
तेरे जाज़िब-ए-बदन, का हुक्म, है मेरे मन में ||
भुला के जी न सकूँ तुझको, ये बद्दुआ देना , मैं प्यार करता रहूँ, इतना बस दुआ देना ...
मिली है ठोकरें हर दर से, क्या सुनाऊं तुझे |
अजीज लोग ही पत्थर, गिरा के मारे मुझे ||
खाएं है जख्म बहुत , तू भी न दगा देना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतना बस दुआ देना …
यूँ तो हर लोग इश्क में , फ़कीर होते हैं |
मिली है इश्क-ए-जफ़र, जिसके तक़दीर होते हैं ||
मेरे नशीब को , कुछ ऐसे ही सजा देना ,
मैं प्यार करता रहूँ , इतना बस दुआ देना …
तेरे तासीर की नजाकत , अशर कुछ ऐसा किया |
बहार भर गई चमन में , तेरे रहमत का शुक्रिया ||
मैं प्यार करता रहूँ , इतना बस दुआ देना ...
मिली शोहरत है मोहब्बत की, जिस तरह से तुझे |
तू भी बदले में मुहब्बत , निशार करना मुझे ||
“अमित” बिछड़ जाए कही, तो एक सदा देना,
मैं प्यार करता रहूँ , इतना बस दुआ देना …
आब-ए-चश्म=आशुं ,आश्ना=प्रिय मित्र,तासीर= प्रभाव,इश्क-ए-जफ़र= प्यार में जित अमित देहाती
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